*✨विश्व कला एवं संस्कृति दिवस*
*💥भारत की संस्कृति, प्रकृति, कला और आध्यात्म का अद्भुत संगम*
*🌺प्रकृति केवल संसाधन नहीं, वह हमारा सम्बन्ध है, यह भावना ही भारतीय संस्कृति की आत्मा है*
*🙏🏾स्वामी चिदानन्द सरस्वती*
ऋषिकेश। विश्व कला एवं संस्कृति दिवस के अवसर पर जब पूरा विश्व अपनी-अपनी सांस्कृतिक विविधताओं और कलात्मक परंपराओं का उत्सव मना रहा है, तब भारत एक बार फिर अपनी समृद्ध और सनातन संस्कृति के प्रकाश से विश्व को आलोकित करने के लिये तत्पर है। भारत की संस्कृति केवल मूर्तियों, चित्रों या ध्वनियों की कलात्मक अभिव्यक्ति नहीं है, बल्कि यह एक गहन आध्यात्मिक जीवनशैली है, जिसमें योग, ध्यान, प्राणायाम और प्रकृति की आराधना सहज रूप से समाहित हैं।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि योग, ध्यान और प्राणायाम भारत की अमूल्य देन है। भारतीय संस्कृति की आत्मा योग है। योग केवल शरीर की व्यायाम पद्धति नहीं, बल्कि यह जीवन को संतुलन, समरसता और आत्मबोध की ओर ले जाने वाला मार्ग है और ध्यान, आत्मा से आत्मा की यात्रा है, और प्राणायाम वह सेतु है जो हमें जीवन के मूल स्रोत, प्राण ऊर्जा से जोड़ता है।
भारत की इन प्राचीन विधाओं ने आज वैश्विक मंच पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है। योग दिवस अब एक वैश्विक पर्व बन चुका है, और ध्यान तथा प्राणायाम को आधुनिक विज्ञान ने भी मानसिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत उपयोगी माना है। यह भारत की सांस्कृतिक विरासत की शक्ति है कि उसके आत्मज्ञान के उपकरण अब विश्व कल्याण के साधन बन रहे हैं।
भारत की प्रकृति पूजक परंपरा रही है। भारत एकमात्र ऐसा देश है जहाँ नदियों को माँ, वनों को देवता, और पर्वतों को पावन माना गया है। यहाँ वृक्षों को केवल लकड़ी या फल देने वाला साधन नहीं, बल्कि जीवनदायक, पूज्य और आराध्य माना जाता है। वटवृक्ष, पीपल, तुलसी और नीम इन सब पौधों का हमारे धार्मिक, सामाजिक और औषधीय जीवन में विशेष स्थान है।
प्रकृति केवल संसाधन नहीं, वह हमारा सम्बन्ध है, यह भावना ही भारतीय संस्कृति की आत्मा है। यही कारण है कि भारत, वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को जीता है। जहाँ सम्पूर्ण सृष्टि को एक कुटुम्ब के रूप में देखा गया।
पौधरोपण और संरक्षण संस्कृति की सच्ची साधना है। विश्व संस्कृति दिवस के अवसर पर यह आवश्यक है कि हम केवल सांस्कृतिक आयोजन करके ही नहीं, बल्कि धरातल पर प्रकृति के संरक्षण का संकल्प लेकर इस दिन को सार्थक बनाएं। पौधरोपण कोई औपचारिकता नहीं, यह उस ऋण को चुकाने की प्रक्रिया है, जो हम पृथ्वी माता के प्रति हर पल चुकाते हैं। हर रोपा गया पौधा एक जीवन का प्रतीक है, एक प्रार्थना है, एक प्रतिज्ञा है कि हम इस सृष्टि को अधिक सुंदर, स्वच्छ और समृद्ध बनाएंगे। जब हम अपने हाथों से पौधा रोपते हैं, तब वह केवल मिट्टी में नहीं, हमारे हृदय में भी जड़ें जमाता है।
कला और संस्कृति, चेतना की अभिव्यक्ति है। भारतीय कला, चाहे वह भरतनाट्यम हो या कथक, वारली चित्रकला हो या मंदिरों की वास्तुकला, सभी में एक बात सामान्य है वह है आत्मा की अभिव्यक्ति। भारत की संस्कृति बाह्य प्रदर्शन से अधिक आंतरिक उत्थान का माध्यम रही है।
हमारे शास्त्रों ने कहा है, सा विद्या या विमुक्तये, वह विद्या जो मोक्ष की ओर ले जाए। वह कला ही सार्थक है जो जीवन को उच्चतर चेतना की ओर ले जाए, जो अंतर्मन को छू जाए, जो मनुष्य को प्रकृति और ईश्वर के समीप ले जाए।
स्वामी जी ने कहा कि संस्कृति का संरक्षण ही भविष्य की सुरक्षा है। आज के समय में जब भौतिकता ने जीवन को गति तो दी है, पर शांति छीन ली है, ऐसे समय में भारतीय संस्कृति का संरक्षण केवल परंपरा का पालन नहीं, बल्कि मानवता का उद्धार है। यह संस्कृति हमें सिखाती है कि जीवन उपभोग नहीं, उपासना है और हम प्रकृति का स्वामी नहीं, सेवक है।
विश्व कला एवं संस्कृति दिवस केवल उत्सव का दिन नहीं, आत्मचिंतन का अवसर है। आज आवश्यकता है एक वैश्विक आंदोलन की जो आत्मा के उत्थान, प्रकृति के संरक्षण और आध्यात्मिक जीवनशैली को केंद्र में रखे और इस दिशा में भारत की संस्कृति सम्पूर्ण मानवता के लिए पथप्रदर्शक है।